डॉ भीमराव आंबेडकर की पूरी जीवनी हिंदी (Dr Bhim Rao Ambedkar Biography Hindi) LokeshTrix


हेल्लो Friends,, आज हम संविधान के निर्माता डॉ भीम राव आंबेडकर के बारे में जानेंगे, डॉ. भीमराव अम्बेडकर को भारत में दलितों और पिछड़े वर्ग के मसीहा के रूप में देखा जाता है। वह 1947 में स्वतंत्र भारत के संविधान की रचना के लिए संविधान सभा द्वारा गठित ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने संविधान को तैयार करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भीमराव अम्बेडकर भारत के प्रथम कानून मंत्री भी थे। देश के प्रति अतुलनीय सेवाओं के लिए वर्ष 1990 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। आइये इनके बारे में विस्तार से जाने -




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    प्रारंभिक जीवन

    डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को म्हो (वर्तमान मध्य प्रदेश में) में हुआ था। वह रामजी और भीमाबाई सकपाल अम्बेडकर की चौदहवीं संतान थे। भीमराव अम्बेडकर अछूत महार जाति के थे। उनके पिता और दादा ब्रिटिश सेना में कार्यरत थे। उन दिनों सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि सेना के सारे कर्मचारी और उनके बच्चे शिक्षित किये जांए और इसके लिए एक विशेष विद्यालय चलाया गया। इस विशेष विद्यालय के कारण भीमराव की अच्छी शिक्षा सुनिश्चित हो गई अंन्यथा अपनी जाति के कारण वो इससे वंचित रह जाते।

    भीमराव अम्बेडकर ने बचपन से ही जातिगत भेदभाव का अनुभव किया। भीमराव के पिता सेवानिवृत होने के बाद सतारा महाराष्ट्र में बस गए। भीमराव का स्थानीय विद्यालय में दाखिला हुआ। यहाँ उन्हें कक्षा के एक कोने में फर्श पर बैठना पड़ता था और अध्यापक उनकी कापियों को नहीं छूते थे। इन कठिनाइयों के बावजूद भीमराव ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और पूर्ण सफलता के साथ 1908 में बंबई विश्वविद्यालय से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। भीमराव अम्बेडकर ने आगे की शिक्षा हेतु एल्फिंस्टोन कॉलेज में दाखिला लिया। वर्ष 1912 में उन्होंने बंबई विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और उन्हें बड़ौदा में एक नौकरी मिल गई।

    वर्ष 1913 में भीमराव अम्बेडकर के पिता का निधन हो गया और उसी साल बड़ौदा के महाराजा ने उन्हें छात्रवत्ति से सम्मानित किया और आगे की पढाई के लिए अमेरिका भेजा। जुलाई 1913 में भीमराव न्यूयॉर्क पहुंचे। भीमराव को उनके जीवन में प्रथम बार महार होने की वजह से नीचा नहीं देखना पड़ा। उन्होंने अपने आप को पूर्ण रूप से पढाई में मशगूल कर लिया और मास्टर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री और 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से अपने शोध ” नेशनल डिविडेंड फॉर इंडिया: अ हिस्टोरिकल एंड एनालिटिकल स्टडी” के लिए दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अम्बेडकर अर्थशास्त्र और राजनिति विज्ञान की पढाई के लिए अमेरिका से लंदन गए पर बड़ौदा सरकार ने उनकी छात्रवत्ति समाप्त कर दी और उन्हें वापस बुला लिया।

    कैरियर

    बड़ौदा के महाराज ने डॉ. अम्बेडकर को राजनितिक सचिव के रूप में नियुक्त किया। पर कोई भी उनके आदेशों को नहीं मानता था क्योंकि वो महार थे। भीमराव अम्बेडकर नवंबर 1924 को बम्बई लौट आये। कोल्हापुर के शाहू महाराज की सहायता से उन्होंने 31 जनवरी 1920 को एक साप्ताहिक अख़बार “मूकनायक” प्रारम्भ किया। महाराजा ने भी “अछूत” की कई बैठकों और सम्मेलनों को संचालित किया जिसे भीमराव ने सम्बोधित किया। सितम्बर 1920 में पर्याप्त धनराशि जमा करने के बाद अम्बेडकर अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए लंदन गए। वहां जाकर उन्होंने वकालत की पढाई की।

    लंदन में अपनी पढ़ाई खत्म करने के पश्चात अम्बेडकर भारत लौट आये। जुलाई 1924 में उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। इस सभा का उद्देश्य सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर दलितों का उत्थान कर भारतीय समाज में दूसरे वर्गों के समकक्ष लाना था। उन्होंने अछूतों को सार्वजनिक टंकी से पानी निकालने का अधिकार देने के लिए बम्बई के पास कोलाबा में चौदर टैंक पर महद मार्च का नेतृत्व किया और सार्वजनिक रूप से ‘मनुस्मृति’ की प्रतियां जलाईं।

    1929 में अम्बेडकर ने भारत में एक जिम्मेदार भारत सरकार की स्थापना पर विचार करने के लिए ब्रिटिश कमीशन के साथ सहयोग का एक विवादास्पद निर्णय लिया। कांग्रेस ने आयोग का बहिष्कार करने का फैसला किया और आज़ाद भारत के एक संविधान के संस्करण की रूप रेखा तैयार की। कांग्रेस के संस्करण में दलित वर्गों के लिए कोई प्रावधान नहीं था। अम्बेडकर दलित वर्गों के अधिकारों की रक्षा के कारण कांग्रेस के लिए उलझन बन गए।

    जब रामसे मैकडोनाल्ड ‘सांप्रदायिक अवार्ड’ के तहत दलित वर्गों के लिए एक अलग निर्वाचिका की घोषणा की गई तब गांधीजी इस फैसले के खिलाफ आमरण भूख हड़ताल पर बैठ गए। नेताओं ने डॉ. अम्बेडकर को अपनी मांग को छोड़ने के लिए कहा। 24 सितम्बर 1932 को डॉ. अम्बेडकर और गांधीजी के बीच एक समझौता हुआ जो प्रशिद्ध ‘पूना संधि’ के नाम से जाना जाता है। इस संधि के अनुसार अलग निर्वाचिका की मांग को क्षेत्रीय विधान सभाओ और राज्यों की केंद्रीय परिषद में आरक्षित सीटों जैसी विशेष रियायतों के साथ बदल दिया गया।

    डॉ. अम्बेडकर ने लंदन में तीनों राउंड टेबल कांफ्रेंस में भाग लिया और अछूतों के कल्याण के लिए जोरदार तरीके से अपनी बात रखी। इस बीच, ब्रिटिश सरकार ने 1937 में प्रांतीय चुनाव कराने का फैसला किया। डॉ बी.आर. अम्बेडकर ने बंबई प्रांत में चुनाव लड़ने के लिए अगस्त 1936 में “स्वतंत्र लेबर पार्टी ‘की स्थापना की। वह और उनकी पार्टी के कई उम्मीदवार बंबई विधान सभा के लिए चुने गए।

    1937 में डॉ. अम्बेडकर ने कोंकण क्षेत्र में पट्टेदारी की “खोटी” प्रणाली को समाप्त करने के लिए एक विधेयक पास करवाया। इस के द्वारा भूपतियों की दासता और सरकार के गुलाम बनकर काम करने वाले महार की “वतन” प्रणाली को समाप्त किया गया। कृषि प्रधान बिल के एक खंड में दलित वर्गों को “हरिजन” के नाम से उल्लेखित किया गया। भीमराव ने अछूतों के लिए इस शीर्षक का जोरदार विरोध किया। उन्होंने कहा की यदि “अछूत” भगवान के लोग थे तो सभी दूसरे राक्षसों के लोग रहे होंगे। वह ऐसे किसी भी सन्दर्भ के खिलाफ थे। पर इंडियन राष्ट्रीय कांग्रेस हरिजन नाम रखने में सफल रही। अम्बेडकर को बहुत दुःख हुआ कि जिसके लिए उन्हें बुलाया गया उस बात को उन्हें कहने ही नहीं दिया गया

    1947 में जब भारत आजाद हुआ तब प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को कानून मंत्री के रूप में संसद से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया। संविधान सभा की एक समिति को संविधान की रचना का काम सौंपा गया और डॉ. अम्बेडकर को इस समिति का अध्यक्ष चुना गया। फरवरी 1948 को डॉ. अम्बेडकर ने भारत के लोगों के समक्ष संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया जिसे 26 जनवरी 1949 को लागू किया गया।

    अक्टूबर 1948 में डॉ. अम्बेडकर ने हिन्दू कानून को सुव्यवस्थित करने की एक कोशिश में हिन्दू कोड बिल संविधान सभा में प्रस्तुत किया। बिल को लेकर कांग्रेस पार्टी में भी काफी मतभेद थे। बिल पर विचार के लिए इसे सितम्बर 1951 तक स्थगित कर दिया गया। बिल को पास करने के समय इसे छोटा कर दिया गया। अम्बेडकर ने उदास होकर कानून मंत्री के पद से त्याग पत्र दे दिया।



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    डॉ भीम राव आंबेडकर के बारे में कुछ रोचक तथ्य :

    • इनका जन्म एक गरीब अस्पृश्य परिवार मे हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल एवं भीमाबाई की संतान थे। 
    • भीमराव अंबेडकर अपने माता-पिता की चौदहवीं और आखिरी संतान थे।
    • डॉ. अंबेडकर का मूल नाम अम्बावाडेकर था। लेकिन उनके शिक्षक, महादेव अंबेडकर, जो उन्हें बहुत मानते थे, ने स्कूल रिकार्ड्स में उनका नाम अम्बावाडेकर से अंबेडकर कर दिया।
    • उन्होंने अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से सन 1915 में अर्थशास्त्र से एम.ए. किया। 
    • इसके बाद प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्री सेलिगमैन के मार्गदर्शन में अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से 1917 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। 
    • वे विदेश जाकर अर्थशास्त्र डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय थे। 
    • बाबा साहेब मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में दो साल तक प्रिंसिपल पद पर कार्यरत रहे। 
    • डॉ. अंबेडकर एक प्रसिद्द भारतीय विधिवेत्ता थे। उन्होंने अपना सारा जीवन भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया।
    • उन्होंने भारत के संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें भारतीय संविधान का जनक भी माना जाता है।
    • डॉ. अंबेडकर स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री बने। 
    • वे भारतीय संविधान की धारा 370, जो जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देता है, के खिलाफ थे। 
    • बाबा साहेब डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया। 
    • डॉ. अंबेडकर को ‘बाबा साहेब’ के नाम से भी लोकप्रियता प्राप्त हुई। 
    • डॉ. अंबेडकर ही एक मात्र भारतीय हैं जिनकी पोर्ट्रेट (चित्र) लन्दन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगी हुई है।भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र को जगह देने का श्रेय भी डॉ. अंबेडकर को जाता है। 
    • अर्थशास्त्र में नोबेल प्राइज जीत चुके अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन डॉ. बी.आर. अंबेडकर को अर्थशास्त्र में अपना पिता मानते हैं। 
    • अंग्रेज़ी में उनकी रचनावली ‘डॉ. बाबा साहब आम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज’ नाम से महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित की गई है। 
    • हिन्दी में उनकी रचनावली ‘बाबा साहब डॉक्टर आम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय’ के नाम से भारत सरकार द्वारा प्रकाशित की गई है। 
    • डॉ. अंबेडकर को भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने बोधिसत्व की उपाधि प्रदान की थी। 
    • इनका जन्म एक गरीब अस्पृश्य परिवार मे हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल एवं भीमाबाई की संतान थे। 
    • डॉ. अंबेडकर का मूल नाम अम्बावाडेकर था। लेकिन उनके शिक्षक, महादेव अंबेडकर, जो उन्हें बहुत मानते थे, ने स्कूल रिकार्ड्स में उनका नाम अम्बावाडेकर से अंबेडकर कर दिया।
    • उन्होंने अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से सन 1915 में अर्थशास्त्र से एम.ए. किया। 
    • इसके बाद प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्री सेलिगमैन के मार्गदर्शन में अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से 1917 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। 
    • वे विदेश जाकर अर्थशास्त्र डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय थे। 
    • बाबा साहेब मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में दो साल तक प्रिंसिपल पद पर कार्यरत रहे। 
    • डॉ. अंबेडकर एक प्रसिद्द भारतीय विधिवेत्ता थे। उन्होंने अपना सारा जीवन भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया।
    • उन्होंने भारत के संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें भारतीय संविधान का जनक भी माना जाता है।
    • डॉ. अंबेडकर स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री बने। 
    • वे भारतीय संविधान की धारा 370, जो जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देता है, के खिलाफ थे। 
    • बाबा साहेब डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया। 
    • डॉ. अंबेडकर को ‘बाबा साहेब’ के नाम से भी लोकप्रियता प्राप्त हुई। 
    • डॉ. अंबेडकर ही एक मात्र भारतीय हैं जिनकी पोर्ट्रेट (चित्र) लन्दन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगी हुई है।
    • भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र को जगह देने का श्रेय भी डॉ. अंबेडकर को जाता है। 
    • अर्थशास्त्र में नोबेल प्राइज जीत चुके अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन डॉ. बी.आर. अंबेडकर को अर्थशास्त्र में अपना पिता मानते हैं। 
    • अंग्रेज़ी में उनकी रचनावली ‘डॉ. बाबा साहब आम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज’ नाम से महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित की गई है। 
    • हिन्दी में उनकी रचनावली ‘बाबा साहब डॉक्टर आम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय’ के नाम से भारत सरकार द्वारा प्रकाशित की गई है। 
    • डॉ. अंबेडकर को भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने बोधिसत्व की उपाधि प्रदान की थी। 




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    अनुच्छेद 370 का विरोध

    आम्बेडकर ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध किया, जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया, और जिसे उनकी इच्छाओं के खिलाफ संविधान में शामिल किया गया था। बलराज माधोक ने कहा था कि, आम्बेडकर ने कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला को स्पष्ट रूप से बताया था: "आप चाहते हैं कि भारत को आपकी सीमाओं की रक्षा करनी चाहिए, उसे आपके क्षेत्र में सड़कों का निर्माण करना चाहिए, उसे आपको अनाज की आपूर्ति करनी चाहिए, और कश्मीर को भारत के समान दर्जा देना चाहिए। लेकिन भारत सरकार के पास केवल सीमित शक्तियां होनी चाहिए और भारतीय लोगों को कश्मीर में कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए, मैं भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ एक विश्वासघाती बात होंगी, यह कभी नहीं करेगा। "फिर अब्दुल्ला ने नेहरू से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें गोपाल स्वामी अयंगार को निर्देशित किया, जिन्होंने बदले में वल्लभभाई पटेल से संपर्क किया और कहा कि नेहरू ने स्के का वादा किया था। अब्दुल्ला विशेष स्थिति। पटेल द्वारा अनुच्छेद पारित किया गया, जबकि नेहरू एक विदेश दौरे पर थे। जिस दिन लेख चर्चा के लिए आया था, आम्बेडकर ने इस पर सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन अन्य लेखों पर भाग लिया। सभी तर्क कृष्णा स्वामी अयंगार द्वारा किए गए थे।

    बी आर अंबेडकर का राजनीतिक कैरियर Political Career of B R Ambedkar

    1936 में, अम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की। 1937 में केंद्रीय विधान सभा के चुनाव में, उनकी पार्टी ने 15 सीटें जीतीं। अम्बेडकर ने अपने राजनीतिक दल के परिवर्तन को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ में बदल दिया,  हालांकि इसने भारत के संविधान सभा के लिए 1946 में हुए चुनावों में खराब प्रदर्शन किया।

    अम्बेडकर ने कांग्रेस और महात्मा गांधी के अछूत समुदाय को हरिजन कहने के फैसले पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि अछूत समुदाय के सदस्य भी समाज के अन्य सदस्यों के समान हैं। अंबेडकर को रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय के कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था।


    एक विद्वान के रूप में उनकी प्रतिष्ठा स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और स्वतंत्र समिति का गठन करने के लिए जिम्मेदार समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति का नेतृत्व किया।

    भारतीय संविधान के फ्रेमर

    डॉ अंबेडकर को 29 अगस्त, 1947 को संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। अम्बेडकर ने समाज के सभी वर्गों के बीच एक वास्तविक पुल के निर्माण पर जोर दिया। उनके अनुसार, अगर देश के अलग -अलग वर्गों के अंतर को कम नहीं किया गया, तो देश की एकता बनाए रखना मुश्किल होगा. उन्होंने धार्मिक, लिंग और जाति समानता पर विशेष जोर दिया।

    वह शिक्षा, सरकारी नौकरियों और सिविल सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए आरक्षण शुरू करने के लिए विधानसभा का समर्थन प्राप्त करने में सफल रहे।

    बी आर अंबेडकर का बौद्ध धर्म के लिए रूपांतरण B R Ambedkar & Buddhism

    1950 में, बौद्ध विद्वानों और भिक्षुओं के सम्मेलन में भाग लेने के लिए अम्बेडकर श्रीलंका गए थे। उनकी वापसी के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म पर एक किताब लिखने का फैसला किया और जल्द ही, बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गये। अपने भाषणों में, अम्बेडकर ने हिंदू अनुष्ठानों और जाति विभाजनों को झुठलाया। अंबेडकर ने 1955 में भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की।


    उनकी पुस्तक, द बुद्ध और उनके धम्मा को मरणोपरांत प्रकाशित किया गया था। 14 अक्टूबर, 1956 को अंबेडकर ने एक सार्वजनिक समारोह आयोजित किया। जिसमें करीब पांच लाख समर्थकों को बौद्ध धर्मों में परिवर्तित किया। चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने के लिए अम्बेडकर ने काठमांडू की यात्रा की। उन्होंने 2 दिसंबर, 1956 को अपनी अंतिम पांडुलिपि, द बुद्ध या कार्ल मार्क्स को पूरा किया।

    बी आर अंबेडकर का निधन B R Ambedkar Death


    1954 – 55 के बाद से अम्बेडकर मधुमेह और कमजोर दृष्टि सहित गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे। 6 दिसंबर, 1956 को  दिल्ली में उनकी अपने घर में मृत्यु हो गई, चूंकि अंबेडकर ने अपना धर्म बौद्ध धर्म को अपनाया था,  इसलिए उनका बौद्ध शैली से अंतिम संस्कार किया गया। समारोह में सैकड़ों हजार समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया।